जल और विचार का वैज्ञानिक रिश्ता

जल और विचार का वैज्ञानिक रिश्ता

जल को जीवन की संज्ञा दी जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है। यह बात भी प्राय: कही जाती है कि व्यक्ति के जीवन को उसके विचार ही आकार देते हैं। तार्किक दृष्टि से इन दो प्रचलित कथनों के आधार पर जल और विचार के बीच गहरा रिश्ता होने का आभास मिलता है। लेकिन अगर व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो यह बात कुछ अटपटी से लगती है। जल और विचार के बीच रिश्ते की बात में यह बात भी जोड़ी जा सकती है कि सचेतन व्यक्तियों के विचार स्वाभाविक तौर पर समृद्ध होते हैं और उनका जीवन भी प्रेरणादायक ऊर्जा बिखेरता है इसलिए जल, विचार और सचेतनता तीनों के बीच गहरा रिश्ता है। यह कथन व्यवहारिक तौर पर हासिल किए गए अनुभवों के आधार पर देखें तो भले ही अजीब लगे लेकिन विज्ञान के सहारे देखें तो यह सही है।

जल निर्जीव वस्तु जैसा नहीं है। वह प्राणी की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। यह हकीकत डॉ. मसारू इमोटो के प्रयोगों से खुलकर सामने आती है। उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति के चलते उन्होंने विश्व के अलग-अलग स्थलों से जल इकट्ठा करके अनोखे प्रयोग किए। इन प्रयोगों के जरिए यह सच्चाई उभरकर सामने आई कि जल जब जमकर स्फटिक बन जाता है तब उसकी अंदरूनी संरचना में उसका असली स्वरूप उभर आता है। प्राकृतिक पहाड़ी झरने के पानी और किसी ठहरे हुए तालाब के पानी से बने स्फटिक की अंदरूनी संरचना एकदम अलग-अलग होती है। मधुर संगीत या फिर जल के सामने लम्बे समय तक बैठकर की गई प्रार्थना के बाद उस जल के बूंदों को जमाकर जब स्फटिक बनाया गया तब उसकी अंदरूनी संरचना हीरे जैसी दिखी। जब दूषित जल या शोरगुल वाले संगीत के स्थल पर रखे हुए जल पर वही प्रयोग करके देखा गया तो उसके स्फटिक की अंदरूनी संरचना व्यवस्थित ही नहीं थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि ’तुमने मुझे बीमार बना दिया। मैं तुम्हारी जान ले लूंगा।’ वाक्य लिखकर जब एक पानी से भरे बोतल पर चिपकाया गया और फिर उस बोतल के पानी से स्फटिक बनाकर देखा गया तो उसकी अंदरूनी संरचना में व्यवस्था का अभाव दिखा।

विचार या भावों के जल पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए या फिर इनके कारण जल की आणविक संरचना में आने वाले बदलाव का प्रमाण पाने के लिए पानी की बूँदों से स्फटिक बनाकर इसे ’डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप’ के जरिए देखा जा सकता है। इस यंत्र में तस्वीर खींचने की क्षमता होती है।

विचार, भाव और सचेनता जल पर किस प्रकार असर डालते हैं, इसे महसूस करने के लिए कैलिफोर्निया में व्यापक स्तर पर एक प्रयोग किया गया। टोकियो के लगभग दो हजार लोगों के एक दल ने जल के नमूने के सामने अपने सकारात्मक भाव व्यक्त किए। यह नमूना कैलिफोर्निया के विद्युत चुम्बकीय शक्ति से घिरे हुए एक स्थल में रखा था। इस घटना के बाद जल से स्फटिक बनाकर जब उसकी अंदरूनी संरचना की तस्वीर ली गई तो वह हीरे जैसी दिखाई दी। बिल्कुल वही पानी का नमूना जो उस स्थल से बाहर कहीं रखा था, उससे बने स्फटिक की अंदरूनी संरचना व्यवस्थित नहीं थी।

जल पर किए गए डॉ. मसारू इमोटो के प्रयोग मानव में छिपी शक्ति को समझने का एक नया नज़रिया देता है। मानव शरीर में जल का एक बहुत बड़ा अंश मौजूद होता है। इस जल को जब किसी की प्रार्थना या फिर दुआएं या तारीफ छूती है तब उस पर भी वही असर पड़ना चाहिए जो असर डॉ. इमोटो के प्रयोगों में जल पर पड़ता हुआ दिखाई देता है। मानव शरीर के बाहर विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के मौजूद होने का प्रमाण किर्लियन फोटोग्राफी या फिर जी.डी.वी. कैमरे से खींचे तस्वीरों में मिलता है। इसी विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के लिए औरा शब्द प्रचलित है। विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र से घिरे मानव शरीर में स्थित जल में डॉ. इमोटो के जल संबंधी प्रयोगों के अनुरूप फल दिखाई देने की आशा तो की ही जा सकती है। पृथ्वी का भी अधिकांश प्रतिशत भाग जल से ही बना है। पूरी पृथ्वी के लिए की गई मंगल कामना या प्रार्थना भी उसके जल पर प्रभाव डाल सकती है। जल पर पड़ने वाला यह प्रभाव मानव को किस तरह प्रभावित कर सकता है यह खोज का विषय है। अक्सर यह कहा जाता है कि पहाड़ी झरने का पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। इसके कई वैज्ञानिक कारण तो मिलते ही हैं लेकिन प्रकृति के निर्जन स्थलों से बहकर आने वाला यह पानी प्रकृति की नैसर्गिकता का स्पर्श पाने के कारण भी स्वास्थ्यकर होता है, डॉ. मसारू के प्रयोग ऐसा मानने के लिए बुद्धि को खुराक देते हैं।

पानी पर किए गए डॉ. मसारू इमोटो के प्रयोग का सूत्र पकड़कर इस बात की वैज्ञानिक व्याख्या भी दी जा सकती है कि किस प्रकार व्यक्ति के विचार और भाव उसके भविष्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। इस प्रक्रिया में भाव या विचारों का शरीर के जलतत्व के संस्पर्श में आना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण सोपान है। इससे एक और बात स्पष्ट होती है कि किसी भी भाव का असर भले ही इंसान की नजरों से ओझल रहे लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि असर होता ही नहीं है। बोले गए शब्द, यहाँ तक कि लिखे गए शब्दों से संबंधित फोटोन* अणु की संरचना में परिवर्तन ला सकते हैं। पृथ्वी की हर चीज़ अणु से बनी है। अणु में स्थित इलेक्ट्रॉन की गति विद्युत चुम्बकीय शक्ति तैयार करने की ताकत रखती है और यह शक्ति दूसरे अणु को भी प्रभावित कर सकती है। कण-कण में ईश्वर के होने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? प्रार्थना, सकारात्मक विचार और संगीत के प्रति जल कणों में स्थित ईश्वर किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करता है यह इन चित्रों में देखा जा सकता है।
यह ईश्वर ऊर्जा ही है।



*फोटोन – ’फोटोन विद्युत चुम्बकीय विकिरण की एक ऐसी मात्रा है जिसे साधारणत: प्राथमिक कण कहा जाता है।’ http://www.dictionary.com/browse/photon

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