बंगाल का स्वर्ग – दार्जिलिंग / Darjeeling: The Paradise of Bengal

बंगाल का स्वर्ग – दार्जिलिंग / Darjeeling: The Paradise of Bengal

गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होने वाली थीं। लेकिन छुट्टियों में खुली प्रकृति के बीच जाकर समय बिताने की योजना अब तक नहीं बन पाई थी। इतने कम समय में सफर के टिकट और रहने की जगह का प्रबंध हो पाना भी मुश्किल था। इच्छा में बड़ी ताकत होती है। इच्छा की ताकत से ही नेट पर जी तोड़ खोजबीन के बाद दो दिनों में हमने बंगाल के स्वर्ग दार्जिलिंग की वादियों में जाने की जरूरी बुकिंग कर डाली। ऋश्यप, कोलाखाम और चारकोल के पहाड़ी सफर में हमें चाय के बागों के दृश्यों की कमी बहुत महसूस हुई थी। इसलिए इस सफर के पहले पड़ाव के तौर पर हमने ’सिंगथम टी एस्टेट’ को चुना।

हिल कार्ट रोड से होते हुए सिंगमारी के नार्थ प्वाइंट से सिंगथम टी रिसोर्ट 1500 फुट नीचे था। एक तो तीखी ढाल, उस पर पहले लगभग दो किलोमीटर रास्ते के खुरदुरेपन ने पहले तो भयभीत किया लेकिन आगे चलकर जब चाय के बाग के दृश्य दिखने लगे तब आँखें इतनी व्यस्त हो गईं कि मन को भयभीत होने की फुरसत ही नहीं मिली। एक ही कद में छटे चाय के पौधे, राह में चाय की पत्तियाँ तोड़ती औरतें और पेड़ों का हरा चादर ओढ़कर खड़े पहाड़ का दृश्य मन में रिसता जा रहा था। इन्हीं राहों से गुजरते हुए हम सिंगथम रिसोर्ट पहुँचे।

सिंगथम टी एस्टेट दार्जिलिंग का सबसे पुराना टी एस्टेट है। सन् 1842 में जर्मन व्यक्ति स्टेन्थेल द्वारा बनाया गया बंगला ही आज सिंगथम टी एस्टेट का रिसोर्ट है। इस बंगले के प्रवेश द्वार से ही दोनों ओर कतार में लगे रंग-बिरंगे फूलों, बंगले के ठीक सामने हरे लॉन पर रखी सफेद कुर्सियों और सफेद चादर से ढ़के मेज़ और उस पर लगी छतरियों के रंगीन दृश्य ने ध्यान खींचा। इस जगह को चुनने की सबसे अहम वजह थी चाय के पौधों का मनोरम दृश्य और नीरवता। रिसोर्ट के कमरे में टंगी तांबे के रंग के फ्रेम में भूरे और सुनहरे रंग की पेंटिंग, फायर प्लेस से लेकर ड्रेसिंग टेबिल तक गहरे मेहगनी रंग के काठ पर सुनहरे रंग से की गई नक्काशी, ऊँचे छत से नीचे लटकते लैंप शेड, कुछ एंटिक शो पीस विक्टोरिया युग में होने का अहसास दिला रहे थे। कमरे की सजावट से लेकर उसमें सोच समझ कर अंधेरे को बरकरार रखने की कोशिश तक इंग्लैण्ड के रॉयल वातावरण को बचाए रखने की कोशिश दिख रही थी। कमरे की बड़ी-बड़ी कांच की खिड़कियों पर जब लताओं और गुल्मों के फैले साम्राज्य को हवा और रोशनी को रोकते हुए पाया तब इस जगह को चुनने का फैसला गलत लगने लगा। लेकिन रिसोर्ट की सजावट में विदेशीपन होने के बावजूद प्राकृतिक सौंदर्य और प्रकृति की जीवंतता ने अफसोस के हालात पैदा होने नहीं दिए। रिसोर्ट के मैनेजर सेनगुप्ता बाबू, टी एस्टेट के मैनेजर गौतम बाबू और देखरेख करने वाले युवक आदित्य की मिलनसारता ने वातावरण में अपनापन घोल दिया। रिसोर्ट के भीतर और बाहर के वातावरण में अजीब सा विरोधाभास था। रिसोर्ट के बरामदे से दिखता पहाड़ का दृश्य और पहाड़ के माथे पर सिरमौर की तरह कंचन जंघा का अचानक फूट निकलना मानो प्रकृति का नीरवता के साथ हमें दिया गया खुला आमंत्रण था। प्रकृति के इस दावत ने मन को छू लिया। शाम को रिसोर्ट में ’बॉन फायर’ की व्यवस्था थी। यहीं यहाँ के मैनेजर सेनगुप्ता बाबू से खुलकर बातचीत करने का मौका मिला। इस बंगले में साल भर में आने वाले यात्रियों में नब्बे फीसदी विदेशी होते हैं। इनकी मेजबानी से अधिक लाभ कमाने की संभावना यहाँ के वातावरण में विदेशीपन भरती जा रही है।

पहाड़ी इलाके में ट्रेकिंग की खास चाह के कारण अगले दिन सुबह हम चाय के बाग और यहाँ के लोगों की संस्कृति से रूबरू होने निकल पड़े। ट्रेकिंग करते हुए हम मैनेजर साहब के बंगले तक जा पहुँचे। फिर उन्हीं से रिसोर्ट तक पहुँचाने का श़ॉर्ट कट रास्ता जानकर वापस लौटे। राह में ही यह जानकारियाँ मिली कि यहाँ कुल 850 के लगभग लोग काम करते हैं। चाय के बाग में काम करने वाली औरतें यहाँ जमीन खरीद सकती हैं। यहाँ के परिवार मूलत: मातृसत्तात्मक हैं। फौज से सेवानिवृत्त कई अफसर, पत्नी के चाय के बाग से संपर्क होने के कारण यहाँ पत्नी के नाम से जमीन खरीदकर रह रहे हैं।

सिंगमारी के मोड़ पर विशाल सेंट जोसफ्स स्कूल था। इस विशाल और भव्य स्कूल में कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है। स्कूल के उल्टे तरफ रोप वे था। रोप वे से टकबर तक पहुँचना एक अविस्मरणीय घटना थी। चाय के हरे खेत और कहीं जंगल के ऊपर से होते हुए गुजरना और खामोश जगहों से गुजरते हुए पक्षियों का कलरव सुनना, एक अनोखा मंजर था। टकबर पहुँचकर एक छोटे से स्टॉल का मालिक नौजवान रोबिन के व्यवहार ने हमें मुग्ध किया। उसकी अपने दुकान से दूर दिखती चाय की फैक्टरी, चाय के बाग से होकर गुजरने वाले सर्पीले रास्तों को दिखाने की चाहत में मानो यात्रियों को इस जगह के रंग को महसूस कराने की अपील थी। आप उसके सामान के खरीददार बने या न बने इस निर्णय का प्रभाव उसके व्यवहार पर पड़ता हुआ नहीं दिखा।

टॉय ट्रेन दार्जिलिंग की एक खूबसूरत विरासत है इसकी टिकट न मिल पाने के कारण इस पर चढ़ने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हो पाया। हमें अब वापस रिसोर्ट लौटना था। हम सिंगमारी से रिसोर्ट चाय के दृश्य का जायजा लेते हुए पैदल लौटना चाहते थे। लेकिन बारिश की वजह से इस योजना को रद्द करना पड़ा। होटल पहुँचकर दरवाजे के सामने बैठकर हम उस पार के पहाड़ पर सितारों की तरह जलते असंख्य घरों की रोशनी को निहारने लगे वहीं मेरी मुलाकात यू. एस. से आई जेसिका से हुई। जेसिका डब्लू. एच. ओ. की ओर से प्रोजेक्ट पर काम करने अपने वैज्ञानिक पति के साथ भारत आई थी। उसे भारत बेहद पसंद था और यहाँ की हवाओं में भारतीयता की गंध महसूस करना चाहती थी। लेकिन सिंगथम रिसोर्ट में उस गंध को पाना मुश्किल था। हम कुछ ही पल में बहुत अच्छे दोस्त बन गए। भारतीय संस्कृति के प्रति जेसिका के गहरे आकर्षण ने मुझे भी उसकी ओर खींचा।

सिंगथम के बाद हमारा अगला पड़ाव था दार्जिलिंग का हैपी वैली होम स्टे। नेपाली परिवार की मेज़बानी में रहने का आनन्द हम पहले भी हासिल कर चुके थे। एक परिवार को जानना साथ ही उनकी संस्कृति को महसूस करने का मौका होटल में रहकर मिलना मुश्किल था। हैपी वैली में सुव्रत तमांग के खुशमिज़ाज परिवार के साथ बिताए पल हमारे लिए यादगार हैं।

दार्जिलिंग में कदम रखते ही बारिश ने हमारा दामन पकड़ा। प्रकृति के इस अनचाहे तोहफे ने हमें इस बात का ऐहसास दिलाया कि अनचाहे हालात में भी अगर धैर्य के साथ राहें खोजी जाएं तो अनुभवों की जोली में दुर्लभ रंग भरे जा सकते हैं। दार्जिलिंग की वादियों में मेघों का छाकर करीब के दृश्य को भी धुंधला कर देना और फिर कभी हल्की-सी बरसात के साथ या फिर यूँ ही धुंधलके का धीरे-धीरे छट जाना और फिर सूरज की किरणों का हल्के-से स्पर्श करना इस मौसम में प्रकृति का खेल था। मैंने महसूस किया कि यह खेल केवल बरसात में देखा जा सकता है।

बादलों के साथ आँखमिचौनी खेलते हुए तब तक सूरज हल्का-सा निकल आया था। हम दार्जिलिंग चौरस्ते से होते हुए महाकाल शिव मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। कहा जाता है कि बरसों पहले इस मंदिर के पुजारी दोर्जे नामक महात्मा हुआ करते थे। जो यहाँ शिव की आराधना करते थे। इस दोर्जे बाबा और उनके आराध्य शिव लिंग के नाम पर ही इस शहर का नाम दार्जिलिंग पड़ा। यह क ऐसा अनोखा मंदिर है जहाँ बौद्ध और हिंदू दोनों मतावलम्बी अपने-अपने ढ़ंग से सदियों से शिव की पूजा करते हैं। शिव मंदिर के थोड़ा नीचे एक गुफा है कहा जाता है कि यहाँ महात्मा दोर्जे और फिर हातिम ताई रहा करते थे। गुफा का मुँह बहुत संकरा है उसके भीतर प्रवेश करना निश्चित रूप से दुष्कर कार्य है।

बरसात के रुकने के इंतजार के बाद जापानी मंदिर और पीस पेगोडा देखने के लिए निकलने का पल हाजिर था। दूर से ही जापानी मंदिर से नगाड़े की आवाज आ रही थी। प्रार्थना गृह में प्रवेश करते ही बौद्ध पुजारी ने बैठने का इशारा किया और एक हथपंखे जैसी वस्तु के साथ एक छोटी-सी लाठी देकर इसे सामने के श्यामपट पर लिखे लोटस सूत्र के मंत्र से ताल मिलाते हुए बजाने का इशारा किया। वह पल प्रार्थना का पल था। और उस वक्त वहाँ आने वालों को भी प्रार्थना में शामिल होने का खुला आमंत्रण था। यह जापानी मंदिर जपान के प्रमुख संपन्न फूजी गुरुजी ने बहुत पहले बनवाया था। गुरुजी ने छठी शताब्दी तक जपान में प्रचलित तमाम बौद्ध सिद्धान्तों का अनुसरण किया था। 1917 में उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार आरंभ किया। उन्होंने चीन और जापान को युद्ध की मानसिकता के दुष्परिणामों के प्रति आगाह भी किया था। वे बौद्ध धर्म की जड़ों को बुद्ध की जन्मभूमि में आकर मजबूत करना चाहते थे। वे सन् 1933 में गांधी जी मिले और जब द्वितीय विश्व युद्ध में जापान में परमाणु बम फेंका गया तब वे लगातार भूखे रहकर प्रार्थना में लीन रहे। सन् 1946 में उन्होंने बुद्ध के शाश्वत जीवन से संबंधित त्याग का संदेश और ’लोटस सूत्र’ के जरिए लोगों को शान्ति और अहिंसा का संदेश देने के लिए शान्ति का प्रतीक ’पीस पैगोडा’ बनाने का निर्णय लिया। और फिर उनके अनुयायियों ने भुवनेश्वर, लद्दाख, दार्जिलिंग, वर्धा, वैशाली, नई दिल्ली, जापान, श्रीलंका, नेपाल, यूरोप, संयुक्त राष्ट्र में पीस पैगोडा बनवाया। शान्ति का प्रतीक श्वेत धवल पीस पैगोडा और उसके बीच बुद्ध की सुनहरी मूर्ति दूर से ही नजर आ जाती है। ऊँचाई पर स्थित बुद्ध की मूर्ति के पीछे की ओर बुद्ध के बाल्यकाल और निर्वाण से जुड़ी तमाम कथाएँ नक्काशीदार चित्रों में वर्णित हैं।

दार्जिलिंग जिले का सबसे ऊँचा स्टेशन घूम हमारा अगला मुकाम था। यहाँ अक्सर मेघों का साम्राज्य छाया रहता है। यहाँ दूर से दिखने वाले पाईन के वृक्षों का सौंदर्य मनोरम है। घूम में हम चौरान्वे साल पुराने बौद्ध विहार में पहुँचे। बुद्ध की सुनहरी मूर्ति प्रवेश द्वार से ही दिख रही थी। मंत्रोच्चारण से भीतर के परिवेश में अजीब-सी गंभीरता थी। भीतर के दीवारों पर बुद्ध के जीवन से जुड़ी कथाओं पर आधारित चित्रकारी शोभा पा रही थी। यह जगह घूम मोनास्ट्री के नाम से प्रसिद्ध है।

अब हम बताशिया लूप की ओर बढ़ रहे थे। बताशिया का अर्थ है हवादार। यह दार्जिलिंग के टाईगर हिल का उभरा हुआ भाग है। यहाँ छोटी गेज़ की रेललाइन घूम और दार्जिलिंग शहर के बीच दोहरे फंदे की तरह बिछी है। यहाँ युद्ध में शहीद होने वाले जवानों की स्मृति में एक अंडाकार संगमरमर के चबूतरे पर एक गोरखा सिपाही की तांबे की मूर्ति है उसके साथ ही 30 फुट ऊँची त्रिकोणाकार ग्रेनाइट के स्मृति स्तंभ पर सिपाही के सम्मान में वचन लिखे हुए हैं।

’ऑरेंज वैली’ टी एस्टेट से होते हुए रॉक गार्डन की ओर जाने का रास्ता है। चाय के बाग से गुजरते हुए हमने बादल के चादर के बागों पर छाने और धीरे-धीरे हट जाने का नजारा बहुत ऊँचाई से देखा। ये वह मुकाम था जब हम बादलों की ऊँचाई पर थे। मेघ हमें छूते हुए ऊपर की ओर उड़ रहे थे। इस मुकाम से कई फीट नीचे था ’रॉक गार्डन’ । चट्टानों से टकराती और उस पर से बहते हुए पहाड़ी झरने का पानी ’रॉक गार्डन’ से होते हुए नीचे आ रहा था। इस पहाड़ी झरने को केन्द्र में रखकर चट्टानों को काटकर पहाड़ के ऊपर तक जाने का रास्ता था। लोहे की रेलिंग, काठ के बेंच और मूर्तियों से रास्ता सजा था। बैठने के लिए जगह-जगह छावनियाँ थीं जहाँ से पहाड़ी झरने के नीचे तक बह जाने का नजारा देखा जा सकता था। चट्टानों से बहते हुए झरने की कल-कल आवाज में एक प्राकृतिक पहाड़ी छंद था।

’रॉक गार्डन’ के रास्ते से होकर गंगा माया पार्क जाने का रास्ता है। गंगा माया सन् 1986-87 में हुए भूमि आंदोलन के लिए शहीद हुई कालिंपोंग की एक वृद्धा महिला थी। उसकी स्मृति में ही यह पार्क बना था। यहाँ भी चट्टानों से होते हुए पहाड़ी झरने का बहना और इस झरने को केन्द्र में रखकर जगह-जगह बैठने की जगह की व्यवस्था आकर्षणीय थी। वापस लौटते हुए ड्राइवर ने बताया कि कुछ साल पहले ’रॉक गार्डन’ में भू-स्खलन के कारण भयानक हादसा हुआ था। ऊपर के पत्थरों के नीचे खिसक आने के कारण पुराना रॉक गार्डन नष्ट हो गया था। फिर से इसे बनवाया गया। खूबसूरती बिखेरती इन जगहों को देखकर यह अंदाज लगाना मुश्किल हो जाता है कि बरसात में यही जगह भू-स्खलन की संभावनाओं के कारण मौत की घाटी भी बन सकती है।

दार्जिलिंग सफर का एक दिन सिर्फ आस-पास की जगहों को टहलते हुए देखने और मन पसंद जगहों पर रुक कर दूर तक का नजारा देखते रहने के लिए निर्धारित था। सुबह-सुबह सैर पर निकलने के साथ ही इस दिन की शुरुआत हुई। ऊँची चढ़ाई चढ़कर हम नाइटिंगल पार्क पहुँचे। यह पार्क सुबह की सैर करने वालों के लिए आदर्श जगह है। इस पार्क में सुबह कई छोटे बच्चों को जूडो कराटे और व्यायाम का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। पहाड़ी इलाकों में जीवन जीने के लिए जिस कठिन परिश्रम और कौशल की जरूरत होती है। उसका अंदाजा ट्रेकिंग के जरिए लगाया जा सकता है। हमारे रहने क जगह के ठीक सामने हैपी वैली टी एस्टेट था। चाय के बाग का मनोरम दृश्य देखते हुए आगे बढ़ते-बढ़ते हम कहीं कहीं थोड़ी देर के लिए रुककर नजारा देख रहे थे। इसी तरह आगे बढ़ते हुए हम पद्मजा नायडू के नाम पर बने चिड़ियाघर पहुँचे। चिड़ियाघर की योजना और यहाँ रखे जाने वाले वन्य प्राणियों के देख-रेख की व्यवस्था काबिले तारीफ है। चिड़ियाघर के साथ संलग्न हिमालयन पर्वतारोहण संस्था एक और विशेष आकर्षण था। खासकर पर्वतारोहण का संग्रहालय काबिले तारीफ है। इसका अवलोकन व्यक्ति को पर्वतारोहियों के जुनून का एहसास दिलाता है। साथ ही उनके द्वारा प्रयुक्त सामान और उनकी उपलब्धियों की जीवंत छवि को मन में बैठा देता है। यह संग्रहालय हिमालय की ’टोपोग्राफी’ का भी ऐहसास दिलाता है।

दार्जिलिंग में जहाँ कई नए आकर्षक पर्यटन स्थल दिखाई दिये वहीं लॉयड बोटैनिकल गार्डन का क्षय भी दिखा। कभी रंग-बिरंगे फूलों से सजा होने वाला यह स्थल अब जंगल-सा दिखता था। सिर्फ एक संकरा सर्पीला रास्ता नीचे तक जाता हुए दिखाई दे रहा था। इसे देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कभी यहाँ एक जगह बैठकर दूर तक देखा जा सकता था और छटे हुए घास और पौधे, रंग-बिरंगे फूल एक खूबसूरत नजारा तैयार करते थे। बोटैनिकल गार्डन से बाहर निकलने की चढ़ाई चढ़ते हुए दार्जिलिंग में लगभग दस-साल पहले आ चुके एक पर्यटक की आँखें यहाँ पेड़ों पर लटके संतरों के नजारे की कमी महसूस कर रही थी। भले ही यह संतरों का मौसम नहीं था लेकिन उनका कहना था कि आजकल मौसम में भी ऐसे दृश्य न दिखने का कारण है मोबाइल टावर और प्रदूषण। इसके कारण प्रकृति के कुछ खूबसूरत नजारे आज केवल अतीत की स्मृतियाँ बनकर रह गए हैं। बावजूद इसके बंगाल का स्वर्ग दार्जिलिंग आज भी पर्यटकों के एक बहुत बड़े वर्ग को खींचने की ताकत रखता है। इस सफर की खूबसूरत यादें आज भी मेरे जेहन में बसी हुई हैं।

Add Your Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

img

New Here?

Connect with me & enjoy a Stress Free Life-style.
Kolkata, West Bengal, India